BA Semester-5 Paper-1 Hindi - Shityashastra aur Hindi Aalochana - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

काव्य की आत्मा

प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

'काव्य की आत्मा' का तात्पर्य काव्य की अन्तर्भूत विशेषता है। वह कौन-सा आधारभूत तत्व है जिसके कारण किसी रचना को काव्य की संज्ञा दी जाये? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्राचीन भारतीय आचार्यों ने इसी प्रश्न को 'काव्य की आत्मा' के रूप में उठाते हुए उस मूल तत्व के अनुसंधान का प्रयत्न किया जो किसी रचना को काव्य संज्ञा पाने की पात्रता प्रदान करता है।

भारतीय साहित्याशास्त्र की शुरूआत पहली शती ईस्वी से होती है। भरतमुनि की रचना नाट्यशास्त्र को काव्यशास्त्र का पहला ग्रन्थ माना जाता है। नाट्यशास्त्र के विचारों को जिस प्रौढ़ता के साथ व्यक्त किया गया है उससे पता चलता है कि भरतमुनि के पूर्व भी काव्यशास्त्रीय चिन्तन की परम्परा अवश्य विद्यमान रही होगी। आचार्य भरत से लेकर भामह तक काव्य के जो लक्षण बताये गये वे प्रायः बाह्य स्वरूप निरूपक ही थे। भामह के बाद के आचार्यों का प्रयत्न किया जिसके फलस्वरूप अनेक संप्रदायों का जन्म हुआ यथा रस संप्रदाय अलंकार संप्रदाय, रीति संप्रदाय, वक्रोक्ति संप्रदाय, औचित्य संप्रदाय और ध्वनि संप्रदाय।

काव्य की आत्मा के सन्दर्भ में सही चर्चा अलंकारवादी आचार्यों से प्रारम्भ होती है। लेकिन कुछ लोग रस को भी काव्य की आत्मा मानने के पक्ष में थे। इसलिए इस पर भी थोड़ा विचार कर लेना आवश्यक है। आचार्यों ने काव्य के आस्वाद को ही रस कहा है। इसके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसे काव्यानन्द की पर्यायवाची माना गया है। लेकिन इस संदर्भ में दो बातें ध्यातव्य है। पहली बात यह है कि आस्वाद विशुद्ध काव्यगत तत्व न होकर काव्य और पाठक के संपर्क का परिणाम है। चूँकि आस्वादन की प्रक्रिया पाठक के मन में संपादित होती है, इसलिए काव्य की आत्मा नहीं स्वीकार किया जा सकता है। डॉ0 नगेन्द्र भी यही लिखते हैं कि रस सर्वथा विषयीगत होता है। उसकी स्थिति सहृदयी की आत्मा में होती है वस्तु में नहीं।

अलंकारवादी आचार्यों ने अलंकार को काव्य के केन्द्रीय तत्व के रूप में स्वीकार किया। सवाल यह उठता है कि आखिर अलंकार है क्या? इसके उत्तर में आचार्य दण्डी ने कहा- काव्य शोभाकरान धर्मानलंकारान् प्रचक्षते अर्थात् काव्य का शोभाकारक धर्म अलंकार है। भामेह, उद्भट, वामन और रुद्रट ने भी अलंकार को शोभाकारक धर्म माना है। कुछ आचार्यों ने 'सौन्दर्यालंकारः' कहकर सौन्दर्य को अलंकार का पर्याय ही मान लिया लेकिन यह ठीक नहीं है क्योंकि अलंकार हमेशा सौन्दर्य के ही साधक नहीं होते असौन्दर्य को भी उत्पन्न करते हैं। दूसरी बात यह है कि सौन्दर्य केवल अलंकारों से नहीं रीति वक्रोक्ति आदि से भी उत्पन्न होता है।

रीति सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक आचार्य वामन रीति को काव्य की आत्मा कहते हुए केन्द्रीय तत्व बताते हैं। 'रीति क्या है? इस सन्दर्भ में वे कहते हैं- विशिष्ट पद रचना रीतिः। अब सवाल यह उठता है कि 'विशेष' क्या है? इसके उत्तर में कहा गया कि 'विशेषौ गुणात्मा' अर्थात् गुण से युक्त होना ही विशेषता है। 'गुण' के स्वरूप को आचार्य वामन स्पष्ट करते हैं- "काव्य शोभायाः कर्त्तारौ धर्मागुणः' यानी काव्य के शोभाकारक धर्म गुण है। यहाँ भी समस्या अलंकार संप्रदाय जैसी है। ऐसी स्थिति में सौन्दर्य ही काव्य की आत्मा है। अलंकार और रीति तो उसके साधन है।

ध्वनिवादी आचार्यों ने ध्वनि को काव्य की आत्मा स्वीकार किया। लेकिन उनकी ध्वनि की परिभाषा में सौन्दर्य का अनिवार्य योग है। इसलिए ये भी अंततः अलंकारवादी और रीतिवादी आचार्यों के रास्ते पर आ जाते हैं।

वक्रोक्ति संप्रदाय के प्रवर्त्तक आचार्य कुन्तक वक्रोक्ति को काव्य का जीवन मानते हुए लिखते हैं "वक्रोक्ति काव्य जीवितम" लेकिन आचार्य कुंतक ने भी जगह-जगह वक्रता, वैचित्र्य, चारुत्व एवं सौन्दर्य को एक-दूसरे के पर्याय के रूप में स्वीकार किया। अतः वक्रोक्ति भी सौन्दर्य का साधक है। इसलिए इनकी भी स्थिति कमोबेश वही है जो उपरिलिखित दोनों संप्रदायों की है।

औचित्य संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य क्षेमेन्द्र ने अलंकार रीति, गुण आदि विभिन्न तत्वों के उचित प्रयोग औचित्य को ही काव्य की आत्मा स्वीकार किये। यह एक तरह से समन्वयवादी प्रयास है। लेकिन क्षेमेन्द्र ने अनेक स्थानों पर ऐसे विचार व्यक्त किये हैं जिससे पता चलता है कि औचित्य भी अपने आप में साध्य नहीं बल्कि काव्य सौन्दर्य का साधन है।

काव्य की आत्मा के सन्दर्भ में कुछ अन्य विचार भी हैं जिनका जिक्र अनिवार्य है। आचार्य मम्मट के अनुसार- 'तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि अर्थात् दोष से रहित, गुण-युक्त और कभी- कभी अनलंकृत शब्दार्थ काव्य है। मम्मट की परिभाषा किसी एक तत्व को काव्य की आत्मा के रूप में नहीं रखती है। उनकी इस परिभाषा पर विश्वनाथ जयदेव एवं जगन्नाथ ने आपत्ति दर्ज करायी।

आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं कि "अदोषौ सगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थौ काव्यम्"। इनकी परिभाषा में अदोष के साथ-साथ गुणों और अलंकार अनिवार्य हो जाता है। इस परिभाषा में अव्याप्ति व दोष है।

आचार्य विश्वनाथ रसात्मक वाक्य को काव्य कहते हैं- 'वाक्यं रसात्मकं काव्यं'। 'रसात्मक' शब्द की सही व्याख्या नहीं हो पाती है। अगर रसात्मक का अर्थ रस समझा जाये तो बहुत से ऐसे काव्य हैं जिनमें रस की शास्त्रीय निष्पत्ति नहीं होती है लेकिन वे उत्तम काव्य में परिगणित किये जा सकते हैं।

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि विभिन्न संप्रदाय के आचार्यों विभिन्न रास्तों से चलते हुए एक ही तत्व सौन्दर्य पर आते हैं। ऐसी स्थिति में सौन्दर्य को काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन देशकाल की भिन्नता तथा दृष्टिकोण की पृथकता के कारण विचारों में एकरूपता नहीं दिखाई पड़ती है। ऐसी स्थिति में काव्य की आत्मा का निर्धारण असंभव तो नहीं कठिन अवश्य है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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